Thursday, January 21, 2010
Wednesday, January 20, 2010
PHIR SE...
फिर से लहराए हैं, जुल्फों के साए
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!
और आ गए हैं जो इस मोड़ पे
तो फिर ये दूरियां हैं कैसी
क्यूँ है एक अजनबी सी खोमोशी
क्यूँ चहरे पे नजाकत भरी है!
मिलो तो अबकी यूँ मिलो
की बाकी न कोई ख्वाहिस रहे
अबकी जो मिल जाएँ तो
मिल जायें हवाओं की तरह!
फिर से लहराए हैं, जुल्फों के साए
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!
और आ गए हैं जो इस मोड़ पे
तो फिर ये दूरियां हैं कैसी
क्यूँ है एक अजनबी सी खोमोशी
क्यूँ चहरे पे नजाकत भरी है!
मिलो तो अबकी यूँ मिलो
की बाकी न कोई ख्वाहिस रहे
अबकी जो मिल जाएँ तो
मिल जायें हवाओं की तरह!
फिर से लहराए हैं, जुल्फों के साए
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!
Monday, January 11, 2010
पूस (WINTER) की लम्बी रातें...
चूल्हे की ठंडी रख सुलग-सुलग कर बुझ जाती है...
पर काम नहीं आती है.
कपकपाते होठों से मल्हार गाते हैं...
पर कपकपी नहीं जाती है.
महीन फटे चादर में टाँगे पेट में घुस जाती हैं...
पर नींद नहीं आती है.
उफ़! ये पूस की रातें... कितनी लम्बी हो जाती हैं.
पर काम नहीं आती है.
कपकपाते होठों से मल्हार गाते हैं...
पर कपकपी नहीं जाती है.
महीन फटे चादर में टाँगे पेट में घुस जाती हैं...
पर नींद नहीं आती है.
उफ़! ये पूस की रातें... कितनी लम्बी हो जाती हैं.
Wednesday, January 6, 2010
duniya ek saray
ना आने का फक्र, ना जाने का गम!
दुनिया एक सराय
जिसको आना हो आये
जिसको जाना हो जाये!
ना बदली है, ना बदलेगी
तासीर इसकी,
बदल लो कितनी भी चाहें
तस्वीर इसकी
दुनिया एक सराय
जिसको आना हो आये
जिसको जाना हो जाये!
दुनिया एक सराय
जिसको आना हो आये
जिसको जाना हो जाये!
ना बदली है, ना बदलेगी
तासीर इसकी,
बदल लो कितनी भी चाहें
तस्वीर इसकी
दुनिया एक सराय
जिसको आना हो आये
जिसको जाना हो जाये!
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