Wednesday, January 20, 2010

PHIR SE...

फिर से लहराए हैं, जुल्फों के साए
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!

और आ गए हैं जो इस मोड़ पे
तो फिर ये दूरियां हैं कैसी
क्यूँ है एक अजनबी सी खोमोशी
क्यूँ चहरे पे नजाकत भरी है!

मिलो तो अबकी यूँ मिलो
की बाकी न कोई ख्वाहिस रहे
अबकी जो मिल जाएँ तो
मिल जायें हवाओं की तरह!

फिर से लहराए हैं, जुल्फों के साए
फिर तमन्नाओं ने अंगड़ाई ली है
फिर कोई बात लफ्जों पे है आई
फिर नज़रों से नजरें मिली हैं!

No comments:

Post a Comment